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लेखनी कहानी -27-Jan-2023

अपने लक्ष्य को पाने के लिए जरूरी है निडर होना


स्वामी दयानंद सरस्वती को आर्य समाज के संस्थापक और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। स्वतंत्रता के लिए की गई कोशिशों में उनकी भूमिका की जानकारी बहुत कम लोगों को है। वे अपने प्रवचनों में अक्सर सुनने वालों को राष्ट्रीयता का उपदेश देते और देश के लिए मर मिटने की भावना भरते थे। सन् 1855 में हरिद्वार में जब कुंभ का मेला लगा तो उसमें शामिल होने के लिए स्वामी जी ने आबू पर्वत से हरिद्वार तक पैदल यात्रा की थी। रास्ते में उन्होंने जगह-जगह प्रवचन दिए और देशवासियों की नब्ज टटोली। उन्होंने महसूस किया कि लोग अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आ चुके हैं और आजादी के लिए संघर्ष करने को आतुर हैं।

एक बार अंग्रेज अधिकारी ने स्वामी जी से कहा- ‘अपने व्याख्यान के प्रारंभ में आप जो ईश्वर की प्रार्थना करते हैं, क्या अंग्रेजी सरकार के कल्याण के लिए भी कर सकेंगे। स्वामी जी ने उन्हें निर्भीकता से उत्तर दिया '' परमात्मा के सामने हर दिन मैं यही प्रार्थना करता हूं कि मेरे देशवासी विदेशी सत्ता के बंधनों से जल्दी से जल्दी मुक्त हों।'' जनरल को स्वामी जी से इस तरह के तीखे उत्तर की आशा नहीं थी। मुलाकात उसी समय समाप्त कर दी गई और स्वामी जी वहां से लौट आए। इसके बाद सरकार के गुप्तचर विभाग की स्वामी जी और आर्य समाज पर गहरी नजर बनी रही। उनकी हर गतिविधि और शब्द का रेकॉर्ड रखा जाने लगा। आम जनता पर उनके असर से सरकार को एहसास होने लगा कि यह बागी फकीर और आर्य समाज किसी भी दिन सरकार के लिए खतरा बन सकते हैं, इसलिए स्वामी जी को समाप्त करने के लिए तरह-तरह के षड्यंत्र रचे जाने लगे।

सीख - अपने लक्ष्य को पाने के लिए निडर होना सबसे जरूरी है।

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